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मंगलवार, 18 अगस्त 2020

तुम कभी नहीं समझ सकते उस जिंदगी को

अपनी कविताओं में विधान कुछ मौलिक सवाल उठाते हैं जो आपको सोचने-विचारने को बाध्‍य करते हैं कि आपके खुद की निगाह में अजनबी होने का खतरा पैदा होने लगता है। इन कविताओं से गुजरने के बाद चली आ रही व्‍यवस्‍था को लेकर आपके मन में भी सवाल उठने लगते हैं और उसके प्रति आंखें मूंदना आपके लिए असुविधाजनक होता जाता है।

विधान की कविताएं


भाग गया ईश्वर

 
मुर्गे की जान की कीमत
एक सौ बीस रुपये
लगाने वाला कौन है?

कौन हैं वो
जो जान की क्षति पर
घोषि‍त करते हैं

चंद लाख का मुआवजा?

कौन  बेचारे मेमने पर
दो गोली दाग़ गया

इस बीच तुम्हारा  ईश्वर 
किधर भाग गया!
   
2

घर लौट रहे लोग मूर्ख नहीं
 

शायद तुम्हे मालूम न हो
कई दिनों तक भूखे पेट रहने का परिणाम

तुम्हारे पिता की मृत्यु महँगी शराब के अत्यधिक सेवन से हुई हो
या तुम्हारे भाई की मृत्यु की वजह रही हो किसी कार की तेज़ रफ़तार ।
तुमने रोटी से दब कर एक मर्द के स्वाभिमान को मरते नहीं देखा
या तुम्हारे लिए कभी घर लौटना उस बाप की तरह जरूरी नहीं रहा
जिसके दिन भर की कमाई से लाया जा सकेगा
शाम के भोजन के लिए सब्जी, आटा और चावल
अपने भूखे परिवार का पेट भरने की खातिर!

तुम कभी नहीं समझा सकते उस जिंदगी को
अनुशासन का पाठ
जो भली भांति समझता है
जिंदगी से मौत की दूरी के गणित को।

साहब ,गरीब शिक्षित नहीं पर जानता है
तुम्हारे वादों की काल्पनिकता और हकीकत के अनुपात को।
दरअसल उसे वायरस से मरने का खौफ उतना नहीं
जितना 'इस बज़्ज़ात भूख से'
अपने बाप की तरह
सरकारी मदद पहुँचने से ठीक पहले मर जाने का है!

3
मेरी फिक्र

अब जब कोई
आने लगता है करीब
इस दिल के
या फिर ये दिल जाने लगता है
 करीब किसी के

तो  बढ़ जाती है मेरी फिक्र!

सोचने लगता हूँ मैं
जगह बनाने की
अपने जख्मी बदन पर
फिर कुछ उँगलियों के
नए ज़ख्मों की ख़ातिर!
     
4

तेरी जात का                                                   

तुम्हें  मालूम नहीं   क्या?
कैसी बात करते हो तुम!
आज जिसके पास खड़े होते ही
सिकुड़ गयी थी तुम्हारी नाक
उसी धोबी ने  धोये थे कल तुम्हारे वस्त्र
वो भी मसल मसल के
 अपने शूद्र हाथोँ  से

हे राम
ये कैसी उच्च जाति से हो तुम!
कि भूल गए दहलीज पर रखे
दफ्तर जाने का इंतजार करते उस जूते को
जिसपे फेरे  हैं  सैकड़ों दफा
उस चमार ने अपनी उंगलियां
जिसकी पहचान और काम को
दूषित समझते आये हो तुम

छी छी

क्या सच तुम्हें नही आती
अपने दूध से
ग्वाले के अंगूठे की महक!
राम राम!
कितना बड़ा धोखा हुआ तुम्हारे साथ
कि तुम्हें अपने घर की दीवार, छत
बगान ,कुर्सी से ले कर मेज तक
बनाने के लिए नहीं मिले 

एक भी शुद्ध सवर्ण हाथ!

5

ये बच्चा नहीं एक देश का मानचित्र है

मुझे भ्रम होता है कि एक दिन ये बच्चा
बदल जायेगा अचानक
'मेरे देश के मानचित्र में'

और सर पर कश्मीर रख ढोता फिरेगा
सड़कों - चौराहों पर
भूख भूख कहता हुआ

मुझे भ्रम है कि कल इसके
कंधे पर उभर आयेंगी
उत्तराखंड और पंजाब की आकृतियां
भुजाओं पर इसकी अचानक उग आयेंगे 

गुजरात और असम

सीने में धड़कते दिल की जगह ले लेगा
मध्यप्रदेश

नितंबों को भेदते हुए निकल आएंगे
राजस्थान और उतरप्रदेश
 

पेट की आग से झुलसता दिखेगा 
तेलंगाना

फटे  चीथड़े पैजामे के  घुटनों से झाँक रहे होंगे
आंध्र और कर्नाटक

और पावँ की जगह ले लेंगे केरल औऱ तमिलनाडु
जैसे राज्य।

मैं जानता हूँ ये बच्चा कोई बच्चा नहीं
इस देश का मानचित्र है
जो कभी भी अपने असली रूप में आ कर

इस मुल्क की धज्जियां उड़ा सकता है!

6


क्योंकि काकी अखबार पढ़ना नहीं जानती थीं


अखबार आया
दौड़ कर गयी काकी

खोला उसे पीछे से
और चश्मा लगा पढ़ने लगी राशिफ़ल
भविष्य जानने की ख़ातिर !
वो नही पढ़ सकीं वो खबरें
जिनमें दर्ज थीं कल की तमाम वारदातें

ना ही वो जान सकीं क़ातिलों को
और उन इलाकों को
जो इनदिनों लुटेरों और क़ातिलों का अड्डा थे !

अफसोस, काकी भविष्य में जाने से पहले ही
चली गयी उस इलाके में

जहाँ जाने को मना कर रहे थे अखबार !

अब उनकी मृत्य के पश्चात -
काका खोलते हैं
भविष्य से पहले अतीत के पन्ने
जो चेतावनी बन कर आते हैं अखबार से लिपट

उनकी दहलीज़ पर!

परिचय

शिक्षा- जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय
संपर्क- 8130730527