बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

तुम्हारी ट्रेन तो चली जा रही है मिनी

देखो ना मिनी
तुम्हारी ट्रेन चली जा रही है
कोइलवर पुल पर
छुक छुक करती
और एक लडका
दूर इधर नदी के पार
हाथ हिला रहा है तुम्हें
दूर से तुम्हें वह लाल झंडे सा दिख रहा होगा
और तुम चिढ रही होगी
कि तुम्हारा यह प्यारा रंग उसने क्यों हथिया लिया है

पर उसने हथियाया नहीं है यह रंग
यही उसका असली रंग है
इस व्यवस्था की शर्म में डूबकर
लाल हुआ हाथ है वह
ओर इस पूरे शर्मनाक दृश्य को
अपने क्षोभ से भिंगोता हुआ
यह रक्तिम हाथ हिला जा रहा है

इधर तट पर नावें हैं
किनारे से लगी हुयी
इन्हें कहीं जाना भी है
पता नहीं

पर तुम्हारी यह ट्रेन तो चली जा रही है
ये रक्तिम हाथ उसे रोकने को नहीं उठे हैं
वे बस हिल रहे हैं
इस खुशी में कि
तुमने इन हाथों का दर्द समझा
और शर्म से लाल तो हुयी
फिर तो फिराक को पढा ही है तुमने
हुआ है कौन किसी का उम्र भर फिर भी ....
यूं यह फिर भी तो
उम्र भर
परेशान करता ही रहेगा...

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

जी हां, भूत होता है ...


पारंपरिक अर्थों को छोड दें तो मैं आस्तिक हूं , नास्तिक नहीं। नास्तिकता एक हवाई अवधारणा है , एक निषेधवादी सत्‍तावादी आचरण। आप चीजों की, शब्‍दों की व्‍याख्‍याएं कर सकते हैं, उसे नकार नहीं सकते। वे और कुछ ना हों एक शब्‍द तो हैं ही, फिर उनके ना होने पर आप कैसे बहस कर सकते हैं। हां उस शब्‍द के अर्थ पर बात की जा सकती है। इस अर्थ में भूत भी होते हैं, हां वे भूत ही होते हैं वर्तमान नहीं होते। वर्तमान में वे आकर किसी को नहीं दिखाई दे सकते। अगर वर्तमान में आपको भूत दिखते हैं तो आप मनोरोगी हैं आप चिकित्‍सक के पास जाएं।
अगर आपको भूत दिखते हैं तो यह दावे का विषय नहीं है ईलाज का विषय है। अगर कोई कहे कि उसने भूत देखा है तो इसका जवाब मूरख की तरह छाती तानकर यह कहना नहीं है कि कहां है भूत चल दिखा। वे आपको नहीं दिखेंगे,क्‍योंकि आपकी मनोस्थिति उस व्‍यक्ति सी नहीं है जिसने भूत देखा है। दरअसल वह वर्तमान में नहीं रह पा रहा यह उसका संकट है। कोई घटना, याद, भय, प्रेम उसे ऐसा जकडे है कि वह बारंबार विस्‍मृति में चला जा रहा है,आप उस पर दया कर सकते हैं, उसे समझने की कोशिश कर सकते हैं।
भूत भूत होता है इसलिए वह कभी एक साथ दो लोगों को एक सा नहीं दिखता। अगर दो लोग भूत देखते हैं तो उनका अनुभव दो तरह का होगा। उनकी अपनी मनोस्थितियों के अनुसार। मुझे यह देख हास्‍यास्‍पद लगा कि डिस्‍कवरी जैसे चैनल पर भी भूत का धार्मिक ईलाज बताया जा रहा था।

चीजें कैसे होती हैं और नहीं भी होती हैं इसे समझने के लिए मैं अपने बचपन की एक घटना सुनाता हूं। यह बीस साल पहले की बात है । तब मैं सहरसा में था। वहां प्रिंसिपल क्‍वार्टर के आंगन में मैं अपनी बहन सरिता के साथ खाना खा रहा था दोपहर का समय था। तभी सामने आंगन में एक मरा चूहा दिखा जिसका खून वहां बिखरा था। तो मैंने सरिता से कहा कि लगता है आज भी बिल्‍ली ने एक चूहे का शिकार किया है। सरिता का ध्‍यान जब उधर गया तो वह नाराज हुई कि क्‍या खाने के समय दिखा दिए भैया। फिर उसे मरे चूह का खून देख उल्‍टी आ गयी।
तब हम हाथ धोने आंगन में गए। तो नजदीक जा जब देखा तो पाया कि वह कपडे का एक टुकडा था जो मरे चूहे का भ्रम दे रहा था।
अब देखिए कि किस तरह एक कपडा चूहे का भरम देता है और उससे उल्‍टी तक हो जाती है। इसी तरह से भूत भी वर्तमान में ना होते हुए आपको परेशान कर सकता है क्‍यों कि वह वस्‍तु नहीं मनो स्थिति है। मेरे गांव के मठिया के साधुओं को गांजा पी लेने के बाद साक्षात शंकर जी दिखते थे, यह भी उसी तरह का मामला है। ये सारे रहस्‍य व्‍याख्‍या खोजते हैं। रहस्‍य का मतलब नहीं हाने से नहीं है मतलब जो अस्‍य यानि अंधेरे में रहता है वह रहस्‍य हुआ ऐसा नहीं कि वह रहता ही नहीं है , वह साफ नहीं है कि क्‍या है इसलिए रहस्‍य है,उस पर पक्‍के तौर पर बात करना गलत है उसे ज्ञान की रौशनी में देखना होगा कि वह जो अंधेरे में है वह क्‍या है...