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बुधवार, 5 अगस्त 2020

जो नहीं अख़बार में -

दर्द में डूबी अजानी सिसकियों की बात सुन ।
जो नहीं अख़बार में उन सुर्खियों की बात सुन।

अलवर, राजस्‍थान के गजलकार रामचरण 'राग' सामान्‍य निगाह से छूट जा रहे मंजरों को, चुप्प्यिों को देखते व सुनते हैं और उसे गजलों में जगह देते हैं। समय की विडंबनाओं का शिकार आज सहज जीवन कैसे हो रहा इस पर निगाह है लेखक की और इन त्रासदियों को वह बारहा पूरी शिद्दत से अभिव्‍यक्‍त करता चलता है।
इस सब के बावजूद आशा की अमर दूब लेखक के भीतर जड़ें जमाए रहती है, समय की सख्‍त चट्टानों को झेलतीं वे बारहा पचका फेंकती रहती हैं और हरियाली को नया जीवन देती चलती हैं।

रामचरण 'राग' की गजलें  -


1.
दर्द में डूबी अजानी सिसकियों की बात सुन ।
जो नहीं अख़बार में उन सुर्खियों की बात सुन।


चीख की आवाज़ तो सुननी पड़ी है लाज़मी 
सुन सके तो आज मेरी चुप्पियों की बात सुन ।


खुशबुओं की चाह में काँटों से घायल हो गईं
फूल से क्या कह रहीं इन तितलियों की बात सुन ।


हौसला रख जो नदी की धार से टकरा गईं 
क्या रही मज़बूरियाँ  उन कश्तियों  की बात सुन ।


जाल - बगुले - तेज़ धारा रोज़ के हालात में
जी रही हैं किस तरह से मछलियों की बात सुन ।


हर कदम पर एक दहशत साथ चलती है सदा 
क्या गुज़रती है दिलों पे लड़कियों की बात सुन ।


अब न फागुन, अब न सावन, अब न मेले, आज फिर -
कौन तुझको याद करता - हिचकियों की बात सुन । 

2.
रोज़ आती है सुबह यूँ तीरगी का ख़त लिए 
बाँचती मासूम नज़रें आँख में दहशत लिए 

नौकरी कब तक मिलेगी जाने उस मज़लूम को
दर-ब-दर वो घूमता है हाथ में किस्मत लिए

छिन गई पाकीज़गी या खो गई शर्मो -  हया
आ गई बाज़ार में क्यों औरतें अस्मत लिए

खेत - घर गिरवी रखे सब रंग लाई मुफ़लिसी
गाँव से मज़बूर आया साथ में गुरबत लिए 

गैर के घर भी मिलेगी  क्या उसे सचमुच खुशी
एक लड़की सोचती है प्यार की हसरत लिए

3.
हताशा को कहाँ दिल में बसाने की ज़रूरत है
दिलों में दीप आशा के जलाने की ज़रूरत है 

मुसीबत का समय हो तो, ज़रूरी हौसला रखना
मुसीबत में खुदी को आज़माने की ज़रूरत है

समझते हो भला क्यों कैद तुम घर पर ठहरने को
दरो - दीवार  ऐसे  में सजाने की ज़रूरत है 

अँधेरा  है  बहुत  माना  मगर  ऐसे अँधेरे में
उम्मीदों का नया सूरज उगाने की ज़रूरत है

जिसे सुनकर ठहर जाए कदम बढ़ती क़यामत के
हमें वो ज़िन्दगी का गीत गाने की ज़रूरत है

उदासी बस्तियों में खौफ़ का मंजर दिखाई दे
समझ लेना वहाँ दो वक्त खाने की ज़रूरत है

यहाँ ऊँची बुतों  से या कि मन्दिर और मस्जिद से
कहीं ज्यादा हमें इक आशियाने की ज़रूरत है

हमारे हाथ भी हैं और हाथों में हुनर भी है
हमारी भूख को रोज़ी कमाने की ज़रूरत है

4.
हमारे हौसले जिस दिन सही रफ़्तार पकड़ेंगे ।
किनारे छोड़ कर उस दिन नदी की धार पकड़ेंगे  ।


समय रहते व्यवस्था ने अगर अवसर दिया इनको
यही जो आज खाली हाथ हैं  औज़ार पकड़ेंगे  ।


अगर रुज़गार मिल पाया नहीं इन नौजवानों  को 
कहीं ये राह भटके तो यही हथियार पकड़ेंगे  ।


अभी है वक़्त सिखलादो इन्हें तहज़ीब पुरखों की 
 बहुत मुमकिन है' वरना ये नया किरदार पकड़ेंगे ।


हवाएं रुख़ बदल कर चल रही हैं आजकल यारों
हवा के साथ जाकर कौनसा  व्यापार पकड़ेंगे ।


हमें तो शौक उड़ने का गगन में पंछियों जैसा 
जिन्हें चस्का गुलामी का वही दरबार पकड़ेंगे ।

5.
मर्यादा को तोड़ रहा था सागर भी
इन आँखों ने देखा ऐसा मंज़र  भी


रोज़ नये  तूफ़ान  गुजरते बस्ती से
इक वीराना    रहता मेरे भीतर भी 


खुद से लड़कर आखिर जब मैं जीत गया
तब ही आया पास विजय का अवसर भी


फल से लदकर जैसे-जैसे पेड़ झुका
वैसे - वैसे बरसे  उस  पर  पत्थर भी 


उम्मीदों की उजली धूप निकल आए
दिल से निकले अँधियारे का इक डर भी


साँझ  ढले  तक  रस्ता  देखा  यादों ने
हो न सका वो मेरा , अपना होकर भी 


बाज़ारों के साथ बढ़ा क़द सपनों का
पाँव निकलते अब चादर से बाहर भी


परिचय

नाम : राम चरण राग 
पिता  : स्व श्री राम सहाय
जन्म : 13 .12 .1962, जुबली बास                अलवर 
शिक्षा : एम ए ( हिन्दी, समाज शास्त्र) बी एड़
निवास :  10/326, गली नं० 1, जुबली बास अलवर
सम्प्रति : व्याख्याता हिन्दी, स्कूल शिक्षा, दिल्ली प्रशासन ( तिलक नगर) नई दिल्ली 

संपादन : 1.सृजाम्यहम् ( सृजक संस्थान की स्मारिका
2. मेवात नामा ( मेवात की संस्कृति पर आधारित पत्रिका)
3.दर्पण ( विद्यालय की वार्षिक पत्रिका)

प्रकाशित कृति : 1.समय कठिन है ( 2017 में नमन प्रकाशन दिल्ली)  समकालीन गीत संग्रह

अप्रकाशित ( शीघ्र प्रकाश्य) : 1.मैं लहरों पर दीपदान सा ( गीत संग्रह)
2. गीताश्री ( श्रीमद्भागवत गीता का पद्यानुवाद)
3. राम नाम है सत्य ( दोहा संग्रह)
4. इक ढलती सी शाम ज़िन्दगी व दर्द का तर्जुमा ( ग़ज़ल संग्रह)

लेखन : दोहा, गीत, ग़ज़ल, नवगीत, मुक्तक, मुक्त छंद, छंदबद्ध कविताएं सन 1978 से लगातार काव्य की प्रचलित विधाओं में लेखन जारी

सम्मान :1. सांदिपन गौरव सम्मान - 2006
2. प्रथम भगवान दास स्मृति सम्मान 2007
3. काव्यश्री सम्मान 2010

साहित्यिक - सामाजिक संस्था - सृजक का संस्थापक सचिव