रविवार, 29 अगस्त 2021

रचनाकार के विश्वबोध और उसकी जीवन स्थितियों की पड़ताल हमें रचना के मर्म तक पहुंचाएगी - कुमार मुकुल

मुक्तिबोध का मानना है कि विश्व के प्रत्येक स्पंदन से कलाकार का संबंध है। विश्व जीवन में घटित घटनाओं के संदर्भ में उसे अपने कार्य को देखने और समझने की कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि संदर्भहीना कला और उसका सौंदर्य हमेशा भ्रामक स्थितियां पैदा करता है। पर इस विश्वोन्‍मुख कलाकार या रचनाकार का निजी जीवन भी एक हद तक उसके रचना व्यवहार को नियंत्रित करता है इसीलिए समीक्षक को चाहिए कि चाहे वह लेखक का आत्मवृत्त ना जाने पर उसे उसकी बाबत पर्याप्त जानकारियां इकट्ठी करते रहना चाहिए। इससे उसकी समीक्षा अधिक यथार्थोन्मुख और गहरी होती है। मुक्तिबोध कहते हैं कि बहुत से लोगों के लेखन में जो विफलता का भाव छुपा है उसका पता समीक्षक उसके जीवन जगत की पड़ताल कर ही पा सकता है और इसके बिना उसकी रचना का सही मूल्यांकन संभव नहीं है। परिवार के भीतर नए और पुराने का जबरदस्त संघर्ष चलता है कि दिल को सबसे गहरी चोट परिवार के भीतर ही पहुंचती है। रचना में अभिव्यक्त कोई भी भावना अपने आप में अच्छी या बुरी नहीं होती। जीवन संदर्भ में ही उसकी प्रासंगिकता की पड़ताल की जा सकती है। अब तस्लीमा नसरीन के लेखन की पड़ताल करें तो जीवन जगत की रूढि़यों के प्रति जिस तरह की विस्फोटक आलोचना उनकी रचनाओं में अभिव्यक्त होती है उसके बीज हम उनके पारिवारिक जीवन में देख सकते हैं जिसका विस्तार से वर्णन उन्होंने अपनी आत्मकथा में किया है। व्यक्तिकेंद्री और आत्मग्रस्त काव्य की मुक्तिबोध आलोचना जरूर करते हैं पर यहां भी वे उसका मूल्यांकन उस के संदर्भ में ही करना पसंद करते हैं। शैली, टैगोर और प्रसाद के काव्य की आत्मग्रस्‍तता के बावजूद वे उसे इसीलिए महत्वपूर्ण मानते हैं कि उसमें जीवन के व्यापक आदर्श उसकी प्रबुद्ध चेतना और सौंदर्य दृष्टि अभिव्यक्त हुई है। मुक्तिबोध मानते हैं कि किसी लेखक की समग्र रचनाओं का अध्ययन कर उस पर विचार किया जाना चाहिए, नहीं तो निष्कर्ष एकांगी होते जाएंगे। इसके लिए वे समीक्षक के निजी उद्यम को जरूरी मानते हैं कि वह समग्रता में रचनाकार को जानने-समझने की कोशिश करता है या नहीं। यहां पर वे भावना को भी एकांगी रूप से लेने की जगह उसके संदर्भों को जानने पर जोर देते हैं कि भावना एक इकाई ना होकर प्रतिक्रियाओं का समुदाय होती है और इन प्रतिक्रियाओं की पृष्ठभूमि की पड़ताल भी आवश्यक है। यह पड़ताल ही हमें रचनाकार द्वारा अभिव्यक्त वस्तु सत्य और जीवन स्थितियों का सही अनुमान करने में मदद कर सकती है।