डॉ. नरेन्द्र लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
डॉ. नरेन्द्र लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 9 अगस्त 2020

अगर सब लोग उनके साथ हैं तो उन्हें क्यों कम से ख़तरा लग रहा है - डॉ. नरेन्‍द्र

अपने जीने मरने पर भी जनता का अधिकार नहीं
इसीलिए कहता हूँ यह आज़ादी अभी अधूरी है।
डॉ. नरेन्‍द्र  दुष्‍यंत कुमार और अदम गोंडवी की परंपरा के राजनीतिक चेतना से लैस गजलकार हैं जो आम जन की पीड़ा को स्‍वर देते हैं और उसे अपने अधिकारों के प्रति सजग करते हैं। शमशेर की लेकर सीधा नारा, कौन पुकारा  की तर्ज पर ये अपनी बात बिना किसी लाग-लपेट के कहते हैं। आमफहम भाषा में रची गयी इनकी गजलें जनचेतना का परिष्‍कार करती चलती हैं।

डॉ. नरेन्द्र की ग़ज़लें


                 1.
क़त्ल है राह के काँटों को हटाने केलिए
क़त्ल है क़त्ल का सबूत मिटाने केलिए।
फ़र्ज़ी मुठभेड़ हैं लिंचिंग हैं क़त्ल करने को
क़त्ल है क़त्ल का हर राज़ दबाने केलिए।
जब भी खाते हैं तो ये झूठी कसम खाते हैं
सैकड़ों झूठ हैं इक झूठ छिपाने केलिए।
असली चेहरा तो यहाँ ढूँढ़ते रह जाओगे
सामने जो भी है चेहरा वो दिखाने केलिए।
अब अदालत की है इस मुल्क़ में औक़ात यही
लड़ रही अपना ख़ुद वज़ूद बचाने केलिए।
सब हैं लाचार फ़ौज़ हो कि पुलिसवाले हों
वारदातों पे हैं सब ख़ेद जताने केलिए।
आपकी जान की कीमत नहीं रही कुछ भी
अब सियासत है यहाँ मौत भुनाने केलिए।
जो भी मसला हो अभी क़त्ल से हल होता है
क़त्ल है क़त्ल की तहज़ीब चलाने केलिए।
                  2.
समय के ख़म से ख़तरा लग रहा है
उन्हें मौसम से ख़तरा लग रहा है।
मुनादी कर रहे थे वह ख़ुदा हैं
मगर आदम से ख़तरा लग रहा है।
चलाते हैं जो हथियारों की मंडी
उन्हें अब बम से ख़तरा लग रहा है।
वो अपने जाल में ख़ुद फँस गये हैं
इसी आलम से ख़तरा लग रहा है।
जिन्हें ख़ूँरेज़ियों की लत लगी है
उन्हें मातम से ख़तरा लग रहा है।
उन्हें गंगा से भी ख़तरा बहुत है
अभी जमजम से ख़तरा लग रहा है।
अगर सब लोग उनके साथ हैं तो
उन्हें क्यों कम से ख़तरा लग रहा है।
लगा कर आग़ इस अहले चमन में
उन्हें शबनम से ख़तरा लग रहा है।
                   3. 
ज़मीन सबकी है ये आसमान सबका है
ये हक़ीक़त है कि सारा जहान सबका है।
किसी के बाप की जागीर नहीं है दुनिया
बाँध लो गाँठ ये हिन्दोस्तान सबका है।
किसी में दम नहीं हमको निकाल दे घर से
जो भी रहते हैं यहाँ ये मक़ान सबका है।
लाख कुर्बानियों के बाद मिला है हमको
ये संविधान तिरंगा निशान सबका है।
ज़ाति मज़हब में ज़माने को बाँटने वालो
सिर्फ़ गीता नहीं बाइबिल क़ुरान सबका है।
हुक्मरानों की कोई चाल न चलने देंगे
ये हमारा ही नहीं है ऐलान सबका है।

                     4.
अस्पताल की ऐसी तैसी मंदिर बहुत ज़रूरी है
राम नाम पर ही चुनाव की सब तैयारी पूरी है।
मरो बाढ़ से या कोविड से ऊपर वाले की मर्ज़ी
ख़ैर मनाओ अभी मौत की तुमसे थोड़ी दूरी है।
लाशों पर वह जश्न मनाएँ तुम इसको बर्दाश्त करो
फिर भी अपना मुँह मत खोलो यह कैसी मजबूरी है।
अपने जीने मरने पर भी जनता का अधिकार नहीं
इसीलिए कहता हूँ यह आज़ादी अभी अधूरी है।
सबकुछ उनके कब्ज़े में है लोकतंत्र लाचार बना
सभी इशारे पर चलते हैं क्या हाकिम क्या जूरी है।

                   5.
करेगा कौन हुकूमत से यह सवाल कहो
अभी मंदिर ज़रूरी है कि अस्पताल कहो।
अभी तो लोग लड़ रहे हैं बाढ़ कोविड से
किस क़दर आदमी है मुल्क़ में बेहाल कहो।
उन्हें चुनाव सूझता है इस क़यामत में
कितने बेशर्म हैं पूँजी के ये दलाल कहो।
लोग रोटी केलिए हाय हाय करते हैं
और वह पूछते हैं और हालचाल कहो।
बीच मझधार में ले जाके नाव छोड़ दिया
ऐसे हालत में किस काम का है पाल कहो।
कैसे अवसर बना लिया है उसने संकट को
कैसे कुछ लोग हो गये हैं मालामाल कहो।

                 6.
बेवज़ह  मत  इधर उधर  में  रहो
तुम ख़ुदा हो तो अपने घर में रहो।
गाँव माना हमारा दोज़ख़ है
तो चले जाओ फिर शहर में रहो।
क्या ज़रूरी है हर बहर सम्भले
जो भी सम्भले उसी बहर में रहो।
ख़ूब फैलाओ अपनी शाखों को
पर मेरे यार अपनी जड़ में रहो।
जितना उड़ना है तुम उड़ो लेकिन
कम अज़ कम अपनी तो नज़र में रहो।
बस सफ़र केलिए सफ़र है यह
मूँद कर आँख इस सफ़र में रहो।
काम करने की क्या ज़रूरत है
ये ज़रूरी है कि ख़बर में रहो।

परिचय

नरेंद्र कुमार मिश्र: वृत्ति से चिकित्सक। प्रवृत्ति से लेखक पत्रकार।
देशभर की पत्र पत्रिकाओं में ग़ज़लें और विविध रचनाएँ प्रकाशित।आकाशवाणी, दूरदर्शन के महत्वपूर्ण केंद्रों से ग़ज़लें प्रसारित।
महत्वपूर्ण अख़बारों और साहित्यिक पत्रिकाओं का संपादन।
दो ग़ज़ल संग्रह कोई एक आवाज़ और समय से लड़ते हुए प्रकाशित।
दो ग़ज़ल संग्रह ताकि सनद रहे और सहर होने तक शीघ्र प्रकाश्य।
एक कविता संग्रह हँसते आँसू, रोते आँसू  प्रकाशित।
एक नृत्य नाटिका राजा सलहेस प्रकाशित।
नेशनल बुक ट्रस्ट से दो पुस्तकें एक परम्परा का अंत और मिथिला विभूति कवि कोकिल विद्यापति प्रकाशित।
नाटक से जुड़ाव। नाट्य शास्त्र में एम ए की उपाधि।
लम्बे समय तक एक हस्त लिखित पत्रिका शिखा  का सम्पादन।