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बुधवार, 17 अक्तूबर 2018

'समुद्र के आंसू' व 'सभ्‍यता और जीवन'

समुद्र के आंसू पर आए पत्र - रामविलास शर्मा {कवि}

मध्‍यप्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ,इन्‍दौर
रामविलास शर्मा
अध्‍यक्ष
27-4-88

प्रिय भाई मुकुल
आपका पत्र मिला। समुद्र के आंसू की प्रति भी। आद्यांत पढ़ गया हूं। आपके मन में भावनाओं का ज्‍वार है और परिवेश के प्रति सतर्क दृष्ठि भी। सामाजिक विसंगतियों के प्रति आक्रोश की एक लहर भी इन कविताओं में यत्र-तत्र विद्यमान है।
प्रकृति ने आपके मन को छुआ है और उसकी सहज अभिव्‍यक्ति भी यहां मौजूद है।
आप एक संभावनाशील कवि हैं। मेरी बधाई स्‍वीकारें।
शेष शुभ।
सस्‍नेह
रामविलास शर्मा

गीतांजलि
396,तिलक नगर,इन्‍दौर-452001/म.प्र.

समुद्र के आंसू पर आए पत्र - विष्‍णु प्रभाकर

प्रिय बन्‍धु,
आशा करता हूं आप स्‍वस्‍थ और प्रसन्‍न हैं। आपका पत्र मिला और पुस्‍तक भी। इधर मेरा स्‍वास्‍थ्‍य बहुत खराब चल रहा है आंखों में मोतिया बिन्‍द उतर रहा है इसलिए पढ़ना बहुत कष्‍टदायी हो गया है फिर भी आपकी कविताएं इधर उधर से पढ़ गया हूं। आपने आज के यथार्थ का मार्मिक चित्रण किया है। आपका उद्देश्‍य बहुत शुभ है और आपकी भाषा में भावों को अभिव्‍य‍िक्ति देने की शक्ति भी है। मुझे विश्‍वास है कि आपका भविष्‍य उज्‍जवल है।
मेरी हार्दिक शुभकामनाएं स्‍वीकार करें।
शेष शुभ
स्‍नेही
विष्‍णु प्रभाकर
28/4/88
818,कुण्‍डेवालान,अजमेरी गेट, दिल्‍ली-110006,फोन-733506

समुद्र के आंसू पर आए पत्र - राजेन्‍द्र यादव
12/12/87
प्रिय अमरेन्‍द्र जी
आपका कविता संग्रह मिला। धन्‍यवाद। कविताओं में मेरी बहुत गति नहीं है,इसलिए अपनी राय को महत्‍वपर्ण नहीं मानता। अपने कुछ कवि मित्रों को दिखाकर उनकी प्रतिक्रिया जानने की प्रयास करूंगा।
आशा है , स्‍वस्‍थ सानंद हैं।
आपका
राजेन्‍द्र यादव

समुद्र के आंसू पर आए पत्र - अरूण कमल

8/1/88
प्रिय मुकुल जी,
नमस्‍कार।
नये वर्ष की मंगलकामनाएं स्‍वीकार करें।
समुद्र के आंसू पुस्तिका मिली। आपके इस अनुग्रह के लिए हृदय से आभारी हूं। कविताएं मैंने पढ़ी हैं और कुछ पढ़ रहा हूं। खुशी की बात है कि आपने कविता से लौ लगायी है। इसे निरन्‍तर विकासमान रखें। कविता का क्षेत्र गहन कंटिल जटिल है-निरन्‍तर साधना से ही - होगी जय,होगी जय ।
नागार्जुन,शमशेर,त्रिलोचन,केदार,मुक्तिबोध के साथ पूर्वर्त्‍ती तथा बाद के कवियों की कविताएं पढ़ें तथा मनन करें। कविता जहां पहुंच चुकी है,हमें उसके आगे जाना है। अभी आपकी उम्र कम है, इसलिए सिर्फ सीखना ही सीखना है। वैसे, हर कवि को अंतिम क्षण तक सीखना ही है।
साथ साथ पढ़ाई पर भी ध्‍यान रखें। कवि को अपने समय का सबसे बड़ा विद्वान भी होना चाहिए।
घर में सबको यथोचित।
शुभकामनाओं और प्‍यार सहित
आपका
अरूण कमल
मखनियां कुआं रोड,पटना-80004

समुद्र के आंसू - संकलन पर सम्‍मति - डॉ.प्रभाकर माचवे

एक दिन मैंने
पूछा समुद्र से
देखा होगा तूने, बहुत कुछ
आर्य, अरब, अंग्रेजों का
उत्‍थान-पतन
सिकन्‍दर की महानता
मौर्यों का शौर्य,रोम का गौरव
गए सब मिट, तू रहा शांत
अब,इस तरह क्‍यों घबड़ाने लगा है
अमेरिका , रूस के नाम से पसीना
क्‍यों बार-बार आने लगा है
मुक्ति सुनी होगी तूने, व्‍यक्ति की
बुद्ध,ईसा,रामकृष्‍ण
सब हुए मुक्‍त
देखो तो आदमी पहुंचा कहां
वो ढूंढ चुका है, युक्ति
मानवता की मुक्ति का
अरे, रे तुम तो घबड़ा गए
एक बार, इस धराधाम की भी
मुक्ति देख लो
अच्‍छा तुम भी मुक्‍त हो जाओगे
विराट शून्‍य की सत्‍ता से
एकाकार हो जाओगे
लो,तुम भी बच्‍चों सा रोने लगे
मैंने समझा था,केवल आदमी रोता है
तुम भी, अपना आपा इस तरह खोने !(समुद्र के आंसू - कवि‍ता)

1987 में जब यह कविता लिखी थी और मेरे पहले संकलन समुद्र के आंसू में छपी तब वरिष्‍ठ कवि केदारनाथ सिंह का काफी प्रभाव था मुझ पर, इस कविता पर भी उसे देखा जा सकता है। उस समय इस पुस्‍तक को पढकर कवि आलोचक प्रभाकर माचवे ने एक पत्र लिखा था जिसमें एक जगह जहां उन्‍होंने प्रूफ की भूलें लिखीं वहीं अन्‍य कविताओं पर आलोचनात्‍मक राय भी दी। एक प्रकाशनार्थ सम्‍मति भी अलग से लिख दी थी जो उस समय छपने-छपाने की बहुत जानकारी और रूचि के अभाव के चलते कहीं छपी नहीं थी जब कि संग्रह की एक समीक्षा तब पटना से निकलने वाले दैनिक हिंदुस्‍तान में कवि मुकेश प्रत्‍यूष ने लिखी थी।
प्रकाशनार्थ सम्‍मति
श्री अमरेन्‍द्र कुमार मुकुल का प्रथम कविता संग्रह समुद्र के आंसू श्री रंजन सूरिदेव तथा डॉ कुमार विमल की अनुशंसासहित प्रकाशित हुआ है। इसमें कवि के इक्‍यावन भावोद्गार हैं। इस संग्रह के अंतिम कवर पर छपी पंक्तियां सर्वोत्‍तम हैं - 
तुझे लगे
दुनिया में सत्‍य
सर्वत्र
हार रहा है
समझो
तेरे अंदर का
झूठ
तुझको ही
कहीं मार रहा है। (सच-झूठ)
युवा बेरोजगार,खबर,चुनाव,मेरा शहर,रोल,बेचारा ग्रेजुएट,अपना गांव,सवालात में यथार्थ और व्‍यंग का अच्‍छा सम्मिश्रण है।ये रचनाएं चुभती हैं।
कवि के अगले संग्रहों में और अच्‍छी कविताओं की आशा रहेगी।
कविता न केवल वक्‍तव्‍य हेाती है,न राजनैतिक टिप्‍पणी।
तत् त्‍वम् असि जैसी रचना से आशा बंधती है - प्रभाकर माचवे / नई दिल्‍ली / 3-1-88
मां सरस्‍‍वती

मां सरस्‍वती! वरदान दो
कि हम सदा फूलें-फलें
अज्ञान सारा दूर हो
और हम आगे बढ़ें
अंधकार के आकाश को
हम पारकर उपर उठें
अहंकार के इस पाश को
हम काट कर के मुक्‍त हों
क्रोध की अग्नि हमारी
शेष होकर राख हो
प्रेम की धारा मधुर
फिर से हृदय में बह चले
मां सरस्‍वती! वरदान दो
कि हम सदा फूलें-फलें!

मां सरस्‍वती - शुद्ध गद्य है - यह कविता कैसे हुई। एक प्रार्थना मात्र है। इसे गद्य की तरह पढ़ें। क्‍या गद्य को तोड़-तोड़कर मुद्रित कर देने से ही कविता हो जाती है मात्राएं भी सब पंक्तियों की एकसी नहीं हैं:15,13,14,12 - यह पहली चार पंक्तियों की मात्राएं हैं - छन्‍द भी ठीक नहीं - डॉ.प्रभाकर माचवे/3-1-88