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सोमवार, 27 जुलाई 2020

तांत्रिक की छतरी, बंदर और चमगादड़ - नितिन यादव

"वह जो आप पहाड़ की चोटी पर छोटी सी इमारत देख रहे हैं वहीं वह तांत्रिक रहता था ।" गाइड ने उंगली के इशारे से दिखाते हुए कहा ।
राजा ,रानी और तांत्रिक । एक आदिम त्रिकोण ।
जनश्रुतियों के पहरे में घिरे रहस्यमई उजाड़ , बिखरे- टूटे, क्षत-विक्षत छत विहीन दुर्ग में वह रानी निवास की फर्श की ओर देख रहा था । जहां अब आंकड़ों के पौधे उग आए थे ।
उसे ऊपर आसमान में एक अटके हुए बादल की तरफ देखता पा गाइड ने कहा "ऊपर तीन मंजिलें और थीं, जो अब नहीं हैं । 
क्यों नहीं हैं ?
यह कहानी उसे गूगल और गाइड दोनों पहले बता चुके थे । काश गूगल जो बहुत सी चीजें उसके जीवन में नहीं रही , उनके कारणों को भी बता पाता । अनुपस्थिति में कुछ चीजें कितनी जीवंत उपस्थिति दर्ज कराती हैं । आसमान की ओर देखते हुए उसने सोचा । छत जो आज नहीं है , कभी रानी के सर पर थी । राजा की छत , तांत्रिक की छत ।
एक छत के लिए स्त्री कितनी जद्दोजहद करती है ,जो दरअसल उसकी होती भी नहीं है । उसने अपनी पत्नी की ओर देखते हुए सोचा ।
कभी-कभी किसी का ना होना भी कितना सुकून देता है । उसने अधूरी दीवार पर हाथ रखते हुए सोचा ।
क्या कभी रानी ने भी छत और दीवारों के गायब होने की कल्पना की होगी ?
उसने कहीं पढ़ा था.. 'हर स्त्री जीवन में एक बार जरूर अपने पति की मृत्यु कामना करती है ।'
तभी हवा के झोंके के साथ चमगादड़ों की बीट की दुर्गंध के कारण उसकी पत्नी ने रुमाल अपनी नाक पर रख लिया । "
यहां आने वाले लोगों का कहना है कि तांत्रिक कि वह छतरी अपनी और उन्हें खींचती है । लोगों का यह भी कहना है कि तांत्रिक की रूह अभी भी इस उजाड़ महल में भटक रही है । " गाइड की आवाज उसके कानों में गूंजी ।
अदम्य , दुनिर्वार ,अतृप्त कामनाएं और भावनाएं कहां-कहां नहीं भटकती ! उसने पहाड़ी किले से नीचे सामने देखते हुए सोचा ।
उसे गाइड की कही हुई बात याद आई 'यहीं नीचे सामने बाजार था जहां से हम आए हैं और बाजार के बगल में राजनर्तकी का निवास स्थान ।'
प्रजा को यदि राजा तक पहुंचना है तो बाजार से गुजरना पड़ेगा और राजा को भी यदि अपने सुरक्षित किले से बाहर निकलना है तो बाजार से जाना पड़ेगा । बाजार जहां गांव से आने वाले लोगों के कानों में गूंजती थीं रानी के सौंदर्य की अनंत कथाएं ।
जब कोई ग्रामीण युवती बाजार से सर उठा कर ढूंढती होगी रानी का चेहरा तो उसकी निगाहें किले की दीवारों से से टकराकर वापस आ जाती होंगी । रानी जब पहाड़ की ऊंचाई से झरोकों से झांकती होगी बाजार की तरफ तो क्या उसे वह निगाहें  दिखाई देती होंगी , जिन्होंने कभी रानी को तो नहीं देखा लेकिन फिर भी जिनके मन में रानी की एक अदद तस्वीर बनी रहती होगी ? बाजार से, एक दूसरे से नितांत अपरिचित न जाने कितनी तस्वीरें इस दुर्ग की ओर कौतूहल से देखती होंगी ।
पत्नी ने अधूरी टूटी हुई  खुरदरी दीवार को सहलाते हुए हौले से कहा "अकेलापन उदासी तो लगभग हर किले की पहचान होती हैं । पर इस किले के अधूरेपन में एक अलग कशिश है ।"
अपूर्ण से पूर्ण और पूर्ण से संपूर्ण की कोशिशों के बीच , पूर्ण से अपूर्ण कि त्रासदी के बीच यह अधूरापन , पूरे होने की कामना लिए हुए नहीं है बल्कि पूरे के अधूरे होने की विडंबना में भीगा हुआ है । अधूरा छूट जाना  और अधूरा हो जाना बाहर से भले ही एक जैसा दिखे अंदर से कितना अलग होता है । श्रापित किले की तरह ही यह अधूरापन भी अभिश्रापित है ।
उसे कुछ सोचता पा गाइड ने कहा "क्या आप तांत्रिक की छतरी पर जाना चाहेंगे ? "
उसके कुछ कहने से पहले ही पत्नी ने कहा "तुम चले जाओ ,मैं नीचे मंदिर में तुम्हारा इंतजार करती हूं ।"
इंतजार, ऊपर चढ़ते लोगों की वापसी का नीचे बैठ कर,  इंतजार...
नीचे उतरते हुए चारों तरफ जर्जर टूटी हुई दीवारों पर लिखे उकेरे गए अश्लील शब्दों को देख , उसे अपने सरकारी स्कूल व  सार्वजनिक शौचालय की दीवारों की याद आई । एकांत और अकेलेपन में स्मृतियां ही नहीं दमित कुंठित बीमार मनोवृति भी बाहर आने को व्याकुल हो उठती है ।
हांफते हुए पस्त हालत में वह तांत्रिक की छतरी से महल की तरफ देख रहा था । उसने सोचा यहां बैठकर जब तांत्रिक महल की तरफ देखता होगा, तो क्या सोचता होगा ?
तांत्रिक सबसे ऊंचाई पर रहता था । उसके बाद राजा का महल था और सबसे नीचे बाजार और आमजन का कोलाहल । सबसे ऊपर रहने के कारण ही सब चीजें अपने मनोवांछित नियंत्रण में करने की कामना तांत्रिक में आई होगी । जमीन भले ही तांत्रिक से दूर थी लेकिन चांद, सूरज और तारे राजा की तुलना में तांत्रिक के अधिक करीब थे ।
जिस तरह राजा ऊंचाई से प्रजा को देखता था उसी तरह ऊंचाई से तांत्रिक राजा के महल को देखता था । राजा के महल से प्रजा की दूरी अधिक थी लेकिन तांत्रिक के निवास स्थान से महल की दूरी इतनी अधिक नहीं थी , हालांकि रास्ता पथरीला और सीधा नहीं था । लेकिन इस ऊंचाई ने ही तांत्रिक के मन में इस पथरीले और टेडे रास्ते को पार करने की लालसा पैदा की होगी ।
आखिर क्यों एक राजा को तांत्रिक की जरूरत पड़ती है और क्यों एक तांत्रिक अपना बीहड़पन छोड़कर एक राजा के पास आता है ?
क्‍या राजा ऊंचाई से डरता है । उसे अपनी ऊंचाई संभालने के लिए एक तांत्रिक चाहिए और तांत्रिक को एक ऐसी ऊंची जगह जहां से वह राजा को उसी तरह से देख सके जैसे राजा देखता है प्रजा को , दूर से कीड़े मकोड़ों की तरह रेंगता हुआ ।
और प्रजा, वह देखती है राजा और तांत्रिक को किस्से कहानियों के जालों से धुंधली हुई आंखों से और इन सब के बीच रानी महल की मजबूत छत और दीवारों को देखती है।
वापस लौटते हुए पत्नी ने ठिठककर कहा "शायद बाजार के बीच यही वह जगह है ,जहां राजनर्तकी रहती थी - जैसे कि  गाइड बता रहा था ।"
खंडहर दुकानों के बीच एक टूटी हुई इमारत राजनर्तकी का आशियाना था । राजनर्तकी रहती भले ही बाजार में थी लेकिन उसकी कला का प्रदर्शन राजमहल के लिए आरक्षित था । बाजार और राज महल के बीच की महीन डोरी पर संतुलन साधकर चलती राजनर्तकी । राज महल और बाजार दोनों के लिए पराई थी ।
मुख्यद्वार के बाहर बंदरों का झुंड देखकर उसे याद आया यह बंदर ही हैं , जो बाजार,  राजमहल से लेकर तांत्रिक के ठिकाने तक दिन भर भागदौड़ करते रहते हैं । बच गये चमगादड़ तो वे राज महल के अंधेरे बंद हिस्सों में सिमटे रात का इंतजार करते रहते हैं ।

परिचय 

नाम -नितिन यादव 
शिक्षा- बी.फार्मा  एमबीए, एम. ए (हिंदी साहित्य ) नेट 
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेखन सिनेमा और क्रिकेट में दिलचस्पी
मोबाइल नंबर 9462231516