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मंगलवार, 11 अगस्त 2020

शब्‍द और ध्‍वनि की नयी छटाएं - जोशना की कविताएं

हे देव
मैं अपने माता पिता की
सेवा ना कर सकी
मुझे ठंडी ओस बना दो
मै गिरूँ वृद्धाश्रम के आँगन की
गीली घास पर
वे रखें मुझपर पाँव और मैं
उन्हे स्वस्थ रखूँ
कुछ युवा रचनाकार जो हिंदी कविता में शब्‍द और ध्‍वनि की नयी नयी छटाओं से अपना ध्‍यान खींच रहे हैं उनमें  डॉ. जोशना बैनर्जी आडवानी एक हैं। कवियों में सदाकांक्षाओं का होना सहज है। अपनी इन सदाकांक्षाओं को जब जोशना स्‍वर देती हैं तो शब्‍दावली से नवजीवन फूट सा पड़ता है और उनका उदात्‍त स्‍वर हमें बांधता हुआ धैर्य प्रदान करता है। अपने भीतर पैदा होते दुख व त्रास की भी संघनित अभिव्‍यक्ति‍ कर पाती हैं वे।

डॉ. जोशना बैनर्जी आडवानी की कविताएं


अंतयेष्टि से पूर्व ....

हे देव
मुझे बिजलियाँ, अँधेरे और साँप
डरा देते हैं
मुझे घने जंगल की नागरिकता दो
मेरे डर को मित्रता करनी होगी
दहशत से
रहना होगा बलिष्ठ

हे देव
मैने एक जगह रूक वर्षो 
आराम किया है
मुझे वायु बना दो
मै कृषकपुत्रो के गीले बनियानों
और रोमछिद्रों में
समर्पित करूँ खुद को

हे देव
मैं अपने माता पिता की 
सेवा ना कर सकी
मुझे ठंडी ओस बना दो
मै गिरूँ वृद्धाश्रम के आँगन की
गीली घास पर
वे रखें मुझपर पाँव और मैं
उन्हे स्वस्थ रखूँ

हे देव
मैं कभी सावन में झूली नही
मुझे झूले की मज़बूत गाँठ बना दो
उन सभी स्त्रियों और बच्चों को
सुरक्षित रखूँ
जो पटके पर खिलखिलाते हुये बैठे
और उतरे तो तृप्त हो

हे देव
कुछ लोगो ने छला है मुझे
मुझे वटवृक्ष बना दो
सैकड़ों पक्षी मेरे भरोसे
भोर मे भरें उड़ान और रात भर करें
मुझमें विश्राम
मै उन्हे भरोसेमंद सुरक्षित नींद दूँ

हे देव
मेरा सब्र एक अमीर
नवजात शिशु है
हर क्षण देखभाल माँगता है
मुझे एक हज़ार आठ मनको
वाली रूद्राक्ष माला बना दो
मेरे सब्र को होना
होगा औघड़

हे देव
मुझे चिठ्ठियों का इंतज़ार रहता है
मुझे घाटी के प्रहरियों की पत्नियों
का दूत बना दो
उन्हे भी होता होगा संदेसों
का मोह
मैं दिलासा दे उन्हे व्योम
कर सकूँ

हे देव
मैनें सवालों के बीज बोये
वे कभी फूल बन ना खिल सके
मुझे भूरी संदली मिट्टी बना दो
मै तपकर और भीगकर
उगाऊँ 
सैकड़ों खलिहान

हे देव
मै धरती और सितारों के बीच
बेहद बौनी लगती हूँ
मुझे ऊँचा पहाड़ बना दो
मै बादल के फाहों पर
आकृतियाँ बना उन्हे
मनचाहा आकार दूँ

हे देव
मै अपनी पकड़ से फिसल कर
नहीं रच पाती कोई दंतवंती कथा
मुझे काँटेदार रास्ता बना दो
मेरे तलवों को दरकार है
टीस और मवाद के ठहराव की
अनुभव लिखने को

हे देव
चिकने फर्श पर मेरे 
पैर फिसलते हैं
मुझे छिले हुये पंजे दो
मेरे पंजों के छापे 
सबको चौराहों का 
 संकेत दें और करें
उनका मार्गदर्शन

हे देव
मेरे आँसू 
बहने को तत्पर रहते हैं
मुझे मरूस्थल बना दो
वीरानियों और सूखी धरा को
ये हक है कि वे मेरे अश्रुओं
को दास बना लें

हे देव
प्रेम मेरी नब्ज़ पकड़
मेरी तरंगे नापता है
मुझे बोधिसत्व   बना दो
त्याग मेरा कर्म हो
मुझे अस्वीकार की 
स्वतन्त्रता चाहिये

हे देव
मेरे कुछ सपने अधूरे रह गये हैं
मुझे संभव और असंभव के बीच
की दूरी बना दो
मै पथिकों का बल बनूँ
उनकी राह की 
बनूँ जीवनगाथा

हे देव
मैने अब तक पुलों पर सफर किया है
मुझे तैराक बना दो
मैं हर शहरी बच्चे को तैराकी
सिखा सकूँ
शहर के पुल बेहद
कमज़ोर हैं

हे देव
मेरे बहुत से दिवस बाँझ रहे हैं
मुझे गर्भवती बना दो
मेरी कोख से जन्मे कोई इस्पात
जो ढले और गले केवल
संरक्षण करने को
सभ्यताओं को जोड़े रखे

हे देव
मैं अपनी कविताओं की किताब
ना छपवा सकी
मुझे स्याही बना दो
मै समस्त कवियों की
लेखनी में जा घुलूँ
और रचूँ इतिहास

🌺

बू....

मैने एक जगह रूक के डेरा डाला
मैने चाँद सितारो को देखा
मैने जगह बदल दी
मैने दिशाओं को जाना
मै अब खानाबदोश हूँ
मै नखलिस्तानो के ठिकाने जानती हूँ
मै अब प्यासी नहीं रहती
मैने सीखा कि एक चलती हुई चीटी एक उँघते हुये
बैल से जीत सकती है
मुझे बंद दीवारों से बू आती है

मै सोई
मैने सपना देखा कि जीवन एक सुगंधित घाटी है
मै जगी
मैने पाया जीवन काँटों की खेती है
मैने कर्म किया और पाया कि उन्ही काँटो ने
मेरा गंदा खून निकाल दिया
मैने स्वस्थ रहने का रहस्य जाना
मुझे आरामदायक सपनों से बू आती है

मै दुखी हुई
लोगों ने सांत्वना दी और बाद में हँसे
मै रोई
लोगो ने सौ बातें बनाई
मैने कविता लिखी
लोगों ने तारीफे की
मेरे दुख और आँसू छिप गये
मै जान गई कि लोगों को दुखों के कलात्मक
ढाँचे आकर्षित करते हैं
मुझे आँसुओं से बू आती है

मैने बातूनियों के साथ समय बिताया
मैने शांत रहना सीखा
मैने कायरों के साथ यात्रा की
मैने जाना कि किन चीज़ों से नहीं डरना
मैने संगीत सुना
मैने अपने आस पास के अंनत को भर लिया
मै एकाकीपन में अब झूम सकती हूँ
मुझे खुद के ही भ्रम से बू आती है

मैने अपने बच्चों को सर्कस दिखाया
मुझे जानवर बेहद बेबस लगे
मैने बच्चो से बातें की
उनकी महत्वकांक्षाओं की लपट ऊँची थी
मैने उन्हे अजायबगर और पुस्तकालय में छोड़ दिया
अब वे मुझे अचम्भित करते हैं
मैने जाना कि बच्चों के साथ पहला कदम ही
आधी यात्रा है
मुझे प्रतिस्पर्धाओं से बू आती है

मुझे दोस्तो ने शराब पिलाई
मैने नक्सली भावों से खुद को भर लिया
मैने जलसे देखे
मैने अपना अनमोल समय व्यर्थ किया
मै खुद ही मंच पर चढ़ गई
मेरे दोस्त मुझपर गर्व करते हैं
मैने जाना कि सम्राट सदैव पुरूष नहीं होते
मुझे खुद की आदतों से बू आती है

मुझे कठिनाईयाँ मिलीं
मैने मुँह फेर लिया
मैने आलस बन आसान डगर चुनी
मुझे सुकून ना मिला
मैने कठिनाईयों पर शासन किया
मेरी मेहनत अजरता को प्राप्त हुई
मैने देखा कठिनाई अब भूत बन मेरे
पीछे नही भागती
मुझे बैठे हुये लोगों से बू आती है

मैने प्रेम किया
मैने दारूण दुख भोगा
मैने अपने प्रेमी को दूसरी औरतों से अंतरंगी
बातें करते देखा
मै जलती रही रात भर
मैने प्रेम को विसर्जित कर दिया
प्रेम ईश्वर के कारखाने का एक मुद्रणदोष है
प्रेम कुष्ठ रोग और तपैदिक से भी भयंकर
एक दिमागी बीमारी है
मुझे उस पल से बू आती है
जब मैने प्रेम किया
🌺

तफरी....

जीवन के सबसे कठिनतम और सबसे क्रूर समय में 
क्या किया
कुछ खास नहीं
बस कुछ  अक्खड़ कविताऐं लिखीं

छाती को किसी तरह समझाया कि जो धँसा हुआ है वह साँस लेता रहेगा
कुछ खास नहीं
बस श्रृंगार कर के आरसी में खुद को निहारा

ऊँचे आकाश को ताकते वक्त मन में क्या करने की कसके ठानी
कुछ खास नहीं
यही कि यात्राओं के लिये पैसा इकठ्ठा करूँ

सूरज की पहली किरण और चिड़ियों की पहली उड़ान देखकर क्या किया
कुछ खास नहीं
नौकरी पर समय से पहले पहुँची

सही समय पर बोनस ना मिलने पर कैसे चीज़ों का बंदोबस्त किया 
कुछ खास नहीं
बच्चों को पंचतन्त्र की कहानियाँ सुनाईं

प्रेम मे हारन पर ऐसा क्या किया जिससे
जीवन जीने लायक बना
कुछ खास नहीं
शाम के वक्त एक पार्ट टाईम जॉब कर ली

देह के सबसे भारी अंग का क्या किया जो तुमसे ढोया नहीं गया
कुछ खास नही
वृद्धआश्रम के बाहर चहलकदमी की

सोचे गये दिये उत्तर में और बिना सोचे गये दिये उत्तर में कैसे अन्तर किया
कुछ खास नही
सोचे गये दिये उत्तर में प्रेम नहीं मिला


🌺

मेरा अहम ....


मेरे हृदय मे आ बसी हैं जाने कितनी ही शकुंतलाएं
जाने कितने ही दुर्वासाओं का वास है हमारे बीच

मुझे अपनी वेदना के चीत्कार के लिए अपना कमरा
नहीं एक बुग्याल चाहिए
चाहिए एक नदी, एक चप्पू चाहिए

कोई देवालय मेरे प्रेयस से पवित्र नहीं
कोई धूप मेरी प्रेमकविता से गुनगुनी नहीं

हे जनसमूह हे नगरपिता
तुम मेरे अन्दर से तो निकाल सकते हो कविता
पर उस प्रेमकविता से मुझे बाहर नहीं निकाल सकते

🌺

जीवन संगीत ....

मैंने जीवन का सबसे पहला संगीत तुम्हीं 
से सीखा है प्रिये

जैसे सीखता है शिशु जन्म लेने से ठीक पहले गर्भ में
 कई त्वचाओं के पीछे खुद को स्थापित करना
जैसे सीखती है नन्ही पत्ती हवा के झोंके से डाली 
पर लहराने से ठीक पहले तनकर सांस लेना
जैसे सीखता है बाज़ का बच्चा उड़ने से ठीक पहले
अपने पिता द्वारा आकाश से ज़मीन पर छोड़ दिये
जाने पर गिरने से पहले संभलने की कला

वे सारे गीत जो तुमने मुझे समर्पित किये हैं
वे दे रहें हैं मुझे गति, चला रहे हैं मुझे,
दे रहे हैं मुझे श्वास 
वे मेरी धरोहर हैं
वे आधुनिक प्रेम की तरह मायावी नहीं
जो कहे मैं गीता पर हाथ रख कर शपथ
लेता हूँ जो भी कहूँगा सच कहूँगा सच के
सिवा कुछ ना कहूँगा ....
और फिर करे छल

वे मेरी अन्तिम श्वास के साथी हैं
मेरे शव के कांधी हैं
तुम्हारे समर्पित किये हुये गीत




परिचय
प्रधानाचार्या,
स्प्रिंगडेल मॉर्डन पब्लिक स्कूल, 
आगरा
 jyotsnaadwani33@gmail.com